-शंकर पुरुषोत्तम आघारकर एक भारतीय उत्पत्ति विज्ञानी (मॉर्फोलॉजिस्ट) थे, जो पौधों की उत्पत्ति विज्ञान (प्लांट मॉर्फोलॉजी) में विशेषज्ञ थे। उन्होंने पश्चिमी घाटों की जैव विविधता का अन्वेषण किया, जहाँ उन्हें ताजे पानी की जेलीफिश की एक प्रजाति मिली।
-आघारकर एक प्रमुख वनस्पतिविद के रूप में महाराष्ट्र विज्ञान संवर्धन संघ के संस्थापक और निदेशक थे। पुणे स्थित एआरआई संस्थान का नाम उनके नाम पर रखा गया है। वे डॉ. आशुतोष मुखर्जी द्वारा प्रशिक्षित और पोषित उन देशभक्तों में से एक थे, जिन्होंने उपनिवेशी विज्ञान के खिलाफ संघर्ष किया। उन्होंने अपनी पढ़ाई के लिए आईएसीएस (इंडियन एसोसिएशन फॉर द कल्टीवेशन ऑफ साइंस) का रुख किया और वहीं से राष्ट्र के लिए विज्ञान करने की प्रेरणा ली। उनके पास आईएसीएस जैसी एक शुद्ध राष्ट्रीय वैज्ञानिक संस्था को महाराष्ट्र में स्थापित करने का विचार था; इसी विचार को साकार करते हुए उन्होंने पुणे में एमएसीएस की स्थापना की। उनकी पत्नी ने एक संस्था की स्थापना के लिए धन जुटाने हेतु अपना ‘मंगलसूत्र’ गिरवी रख दिया; यही उनकी श्रद्धा और बलिदान का उदाहरण था।
-प्रोफेसर शंकर पुरुषोत्तम आघारकर के प्रयासों से युवा वैज्ञानिक होमी जे. भाभा को 1851 रिसर्च फेलोशिप प्राप्त करने का अवसर मिला। यह योजना रॉयल कमीशन द्वारा 1851 में शुरू की गई थी, जिसका उद्देश्य असाधारण क्षमता वाले युवा वैज्ञानिकों या इंजीनियरों को वार्षिक पुरस्कार देना था। आघारकर की दूरदृष्टि और ब्रिटिश साम्राज्य से संघर्ष के कारण, यह फेलोशिप भारतीय छात्रों को भी दी जाने लगी। 1936 में भाभा उन पहले भारतीयों में से एक थे, जिन्हें सीनियर स्टूडेंटशिप प्राप्त हुई।